हम से न जाने कैसे ये भूल हुई
जो जुगनू को समझ लिया सितारा।
क्यों हमने सोचा अकेली राहों में ,
घोर अँधेरे में मिल ही लिया सहारा।।
अब भी हम तैर रहे हैं थक के भी,
उस पार अगर हो या न हो किनारा।
बिखरी जुल्फों को ओर बिखरा दिया
इक हवा का झोंका भी न इसे सवारा।।
निगाहों के आगे दूर दूर तक है वीरानी
फिर क्यों दिल होले से किसीको पुकारा।
जो दिखता है आगे वो है मृग-मरीचिका
सच मानना पर दिल को नहीं गवारा।।
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