पंकज उधास जी द्वारा गाया गया एक और मेरा पसंदीदा गज़ल पेश करती हूँ। रात, तन्हाई, उनकी याद और यह ग़ज़ल – क्या बात है!! नासिर कसमीजी की ग़ज़ल के पहले जो “फैज़ अहमद फैज़” के रुबाई है वो इस ग़ज़ल को और भी हसीन बनाता है। रुबाई का मतलब Quatrain हैं, जो एक प्रकार का छंद या एक पूरी कविता हैं, जिसमें एक स्वतंत्र विषय का चार पंक्तियाँ होती हैं।
उस रुबाई का एक मलयालम विवर्तन मेरे कुछ दोस्तों के लिए जिनको इन खूबसूरत पंक्तियों का मतलब समझ में नहीं आता:
രാവിൽ, മമ ഹൃത്തിൽ നിൻ നഷ്ടസ്മൃതികളീവിധമണഞ്ഞു
തരിശുഭൂമിയിലേക്ക് മിണ്ടാതെ വസന്തം ആഗമിച്ചപോലെ
തണുത്ത പുലർകാറ്റ് മരുഭൂമിയിൽ മെല്ലെ വീശുന്നപോലെ
രോഗാതുരന് ഹേതു കൂടാതെ ആശ്വാസം കിട്ടിയ പോലെ.
Singer: Pankaj Udhas
Gazal by Nasir Kazmi
Quatrain by Faiz Ahmed Faiz
raat yun dil mein teri khoyi huyi yaad aayi
jaise virane mein chupke se bahaar aa jaye
jaise sahraon mein haule se chale baad-e-nasim
jaise bimar ko be-wajh qarar aa jaye
Dil dhadakne ka sabab yaad aaya – (2)
Wo teri yaad thi ab yaad aaya
Dil dhadakne ka sabab yaad aaya
Aaj mushkil tha sambhalna ye dost – (3)
Tu musibat mein ajab yaad aaya
Wo teri yaad thi ab yaad aaya
Dil dhadakne ka sabab yaad aaya
Haal-e-dil hum bhi sunate lekin – (3)
Jab wo rukhsat hua tab yaad aaya
Wo teri yaad thi ab yaad aaya
Dil dhadakne ka sabab yaad aaya
Baith kar saya-e-gul mein ‘nasir’ – (3)
Hum bahut roye wo jab yaad aaya
Wo teri yaad thi ab yaad aaya
Dil dhadakne ka sabab yaad aaya – (2)
रात यूँ दिल में तेरी खोई हुई याद आयी
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाये
जैसे सहराओं में हौले से चले बाद-ए-नसीम
जैसे बीमार को बेवजह क़रार आ जाये।।
दिल धड़कने का सबब याद आया – (2)
वो तेरी याद थी अब याद आया
दिल धड़कने का सबब याद आया
आज मुश्किल था संभालना ऐ दोस्त – (3)
तू मुसीबत में अजब याद आया
वो तेरी याद थी अब याद आया
दिल धड़कने का सबब याद आया
हाल -ए -दिल हम भी सुनाते लेकिन – (3)
जब वो रुक्सत हुआ तब याद आया
वो तेरी याद थी अब याद आया
दिल धड़कने का सबब याद आया
बैठकर साया-ए -गुल में ‘नासिर’ – (3)
हम बहोत रोये वो जब याद आया
वो तेरी याद थी अब याद आया
दिल धड़कने का सबब याद आया – (2)
दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तेरी याद थी अब याद आया
आज मुश्किल था संभालना ऐ दोस्त
तू मुसीबत में अजब याद आया
दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तेरा वादा -ए -शब याद आया
तेरा भूला हुआ पैमान-ए-वफ़ा
मर रहेंगे अगर अब याद आया
फिर कई लोग नज़र से गुज़रे
फिर कोई शहर-ए-तरब याद आया
हाल -ए -दिल हम भी सुनाते लेकिन
जब वो रुखसत हुआ तब याद आया
बैठकर साया-ए -गुल में ‘नासिर’
हम बहोत रोये वो जब याद आया
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