बादल की आँसू
आसमान में उड़कर भी तो रो रही है
अन्दर से दर्द पानी बनकर बह रही है
बादल ! तुझे सब खुशकिस्मत समझे पर
तू क्यों दुखी कहानियाँ कह रही है?
तेरी रोने पर जाग उड़ने लगी
धर्ती से खुशबु तो वो अच्छे लगे
नया जीवन का खिलना अच्छा लगे
सबकी प्यास बुझाना अच्छा लगे
मगर तेरी कारण देख री घटा
किसीकी तो सबकुछ बह रही है।
खुले आम रो सकती है तू बार-बार
छुपके भी न रो पाती हूँ मै तो यार
जैसे बूँदो से तेरा काला है रंग वैसे
चेहरे की रंग छुपाने हँसना है हरबार
न जाने कितने दर्द मिला है दिल को
अब हम जिस्म -ए -दर्द भी सह रही हैं।
😍😍