टूटे सपने न दिखेंगे

टूटे सपने न दिखेंगे दुबारा

अँधेरे में फ़टके, न मिली चाँदनी का सहारा
शायद नैया की डूबने पर ही मिलेगा किनारा।

क्या भरा है ? क्या छुपा है ? क्या बताए ज़माने से,
खोलके दिखाने के लिए दिल न कोई पिटारा।

मेहँदी रचाये है सूरज, साँझ की हाथोँ में
सूने इस हाँथ में कब चमकेगा लाल सितारा।

उलझ रहा है ज़िंदगी, मिट जाएगी कभी भी
अगर न कोई हाँथ ने इसे प्यार से सवारा।

क्या फ़ायदा अब रोके, वो न आएगा लौट के
बहुत देर हो चुकी थी जब तू ने उसे पुकारा।

आशाओं का गला घोंट दे, इसमें ही भला हैं
इनके साकार होना दिल को अब न गवारा।

सपनों को फिर से देखने न कर कोशिश “हसी”
अच्छा हो या बूरा, टूटे सपने न दिखेंगे दुबारा।

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