मिट्टी की क्या मोल!
सब तुझ में ही जनम लेते है
खुदा हमें तुझसे ही बनाते हैं
आखिर तेरे संग ही तो सब
एक दिन विलीन हो जाते हैं।
फल तेरी गोद में उगते हैं
हीरे, सोने, तेल की खोज में
खुदाई करें तुझमेँ मानव
क्या-क्या नहीं है तेरी गोद में!
जड़को सीने में दबाकर
पेड़-पौदों को संभालती है
कीटों से हाथी तक को तू
अपनी सीने में ही पालती हैं।
तुझको जलाकर मटके बने
तुझे मिलाकर इमारतें बने,
चींटी की घर से ईश्वर तक
मृत्तिका! क्या न तुझसे बने।
तेरे नाम मानव लड़ते रहे
तेरी वास्ते अपनों को मारे,
मगर तेरी कदर न जानते
लहुं बहाने वाले ये बेचारे।
तुझसे खेले, तुझसे कमाए
अंत में तुझ में ही समा जाए,
फिर भी क्यों ये लोग कहे
मिट्टी की क्या है मोल रहे।।