बुराई
अच्छाई की परदे में बुराई करता समाज बूरा लगे
कल और कल के परेशानियों भरी आज बूरा लगे।
सावन के झूल्हे में झूलता हर नज़ारा अच्छा लगे
पर गीली-गीली समां में काम-काज बूरा लगे।
शर्माके झुकती नज़र ही औरत की असली ज़ेवर हैं
पर दुनिया ही बेशर्म हैं तो फिर यह लाज बूरा लगे।